Chapter Three - Known-Unknown City Mumbai

भाग तीन - जाना-अनजाना शहर मुंबई




"उफ़ क्या बदबू हैं?" सोते सोते कुछ महसूस हुआ बदबू इतनी गंदी थी की नाक पर रुमाल रखा फिर भी कम नहीं हो रही थी. झुंझलाकर उठा देखा तो लोग फ्रेश हो रहे थे. कोई अभी भी सोये थे. कोई नाक पर रुमाल लिए तेढासा मुहं बनाये थे. जो शायद हमेशा आने जाने वाले थे वे जानते थे की अभी हम मुंबई के अन्दर दाखिल हो रहे है. क्यों की उन्हें इस चीज से कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था. मैंने देखा के सुबह के ६ बज चुके थे. और गाड़ी कल्याण के आस पास पहुँच चुकी थीं. मुझे पता ही नहीं चला की रात में किताब पढ़ते पढ़ते और विचारों के चक्रवुह के चलते कब नींद लगी. खैर मुंबई (कल्याण) आ गया था. मुझे याद आ रहा था के जब पिछली बार मैं पूना आया था तो दिलीप के साथ कल्याण तक आया था और यही से वापिस चला गया था. रात भर हमारी पार्टी चालू थी. और हमें ४ बजे पूना वापिस जाना था तो हम कल्याण से सीधा शिवाजी छत्रपति टर्मिनस (पहले का विक्टोरिया टर्मिनस VT) पहुचें थे. और वहा से गेट वे ऑफ़ इंडिया देखने गए और बस वापिस आके सीधा पुणे के लिए रवाना हो गए. मतलब सिर्फ ५ घंटे की मुंबई से मुलाकात हुई थी बस.



अब ट्रेन शिवाजी छत्रपति टर्मिनस पहुँच गई थी. मैं मेरा सामान लेके उतर रहा  था और सोच रहा था के अब आगे कैसा होगा क्या मुंबई मुझे अपनाएगी?. सामान लेके मैं उतरा तो दिनेश को पहले कॉल किया के उसके दोस्त को बता दे की मैं मुंबई पहुँच गया करके. और मुझे किस लोकल से पनवेल पहुँचाना है वो भी बता दे. दिनेश बोला की पनवेल की ही लोकल प्लेटफॉर्म नं. ४ या ५ से जाएगी चेक कर लेना. और हर १५ मिनिट में लोकल चालू रहती है. सो मैंने टिकेट काउंटर से टिकट लिया और प्लेटफॉर्म नं. ५ पर पहुँच गया क्यों की उसी पर लोकल आनी थी. अभी ट्रेन आने में १० मिनिट थे तो आजू बाजु का नजारा देखना उच्चित समझा. अरे बापरे हर तरफ भागम भाग, लोग आ रहे थे, लोकल में सवार हो रहे थे जा रहे थे. २ मिनिट में स्टेशन खाली होता तो हर दो मिनिट में इतने लोग आते की फिरसे स्टेशन में लोगो की भीड़ जम जाती. मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था की मैं भी कुछ ही दिन में इस भीड़ का हिस्सा होने वाला हूँ.



मेरी ट्रेन माफ़ करना पनवेल की लोकल (अब आदत डालनी पड़ेगी) आ गयी थी और वो मुझे छोडनी नहीं थी. सो मैं उसमे चढ़ गया लोकल काफी खाली थी. लेकिन जैसे जैसे एक एक स्टेशन आ रहे थे लोकल में भीड़ बढ़ रही थी. वाशी आते आते ट्रेन पूरी तरह से भर चुकी थी. मुझे खिड़की की सिट मिली थी सो मैं बाहर देख रहा था. लोग कैसे चढ़ रहे थे, उतर रहे थे, लटक रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे सब मशीन बने है. लोकल जहाँ भी रूकती बस १५-२० सेकण्ड में ही इतनी भीड़ उतरती और चढ़ती की जिसकी कोई गिनती ना हो. और लोकल वही से ६०-७० की स्पीड से चलने लगती ऐसा लगता की लोकल के साथ लोग भी दौड़ने लगे है. ये सही भी था. मुंबई की जान लोकल. खैर वाशी आते आते मुझे बहोत सी चीजे मुंबई के बारे में जानने को मिली. शायद मैं जानना चाहता था इसलिए मेरी उत्सुकता वश मैंने जानकारी हासिल की. दिनेश ने बताया था की किसी खांदेश्वर स्टेशन में उतर जाना लेकिन मुझे समज नहीं आया और मैं सीधा पनवेल स्टेशन उतरा. वहां से ५ मिनिट के दुरी पर बस स्टॉप था और वही पर दिनेश का दोस्त मुझे लेने आने वाला था. मैं अपना सब सामान कमसे कम २५-३० किलो रहा होंगा वो उठाके बस स्टॉप के पास आया वहा से दिनेश के दोस्त को हा शिर्के को मैंने कॉल किया और पुछा के कितना टाइम है वह बोला की २० मिनिट लगेगा. फिर मैं बस स्टॉप पर ही उसका इंतज़ार कर रहा था. मुझे वहां का शोर सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे मैं नागपुर में ही हूँ. घर छोड़े हुए मुझे १४ घंटे से ऊपर हो चूका था. सो मैंने घर में कॉल करके बता दिया की मैं सकुशल पहुँच गया हूँ. लेकिन माँ के आवाज़ में कुछ भारीपन महसूस हुआ शायद उन्हें लग रहा हो के मैं घर से दूर चला गया करके. मगर मुझे भी कुछ करके दिखाना था. मैंने पूरा तय कर लिया था की मुझे यहाँ से कुछ बनकर जाना है.



खैर मेरे फोन के बजने से मेरे विचारों का चक्र टूट गया और देखा के शिर्के मुझे कॉल कर रहा है. मैंने उठाया तो उसने मुझे बस स्टॉप के गेट के पास आने को कहाँ. मै फिरसे सामान उठा के बस स्टॉप के सामने की तरफ पहुंचा. थोड़ी देर आँखें इधर उधर देख रही थी शिर्के को ढूंढ रही थी. फिरसे कॉल करके उसने मेरे और मैंने उसके शर्ट पंट का रंग पूछा और अंत में बिछड़े दोस्त की तरह हम मिल गए. मेल मिलाप करके हम फिर ऑटो ढूंढने लेकिन कोई भी वहां से खांदेश्वर जाने के लिए तैयार नहीं था. तो फिर शिर्के ने सुझाया के आगे के चौक से हमें ऑटो मिल जायेगा. फिर मैं और वह आगे चल पड़े. मुंबई के हवामान की वजह से बहोत पसीना आ रहा था और चिपचिपा भी लग रहा था. अब हाथ में जो सामान था उसका भी वजन ज्यादा  लग रहा था. अभी मैं पसीने से पूरा लथपथ हो गया था. और शिर्के साहब मेरे बहोत आगे जा चुके थे. आख़िरकार हमें ऑटो मिल गया और कुछ मोलभाव करके हम हमारे स्थान की और बढे. पनवेल काफी अच्छी जगह मालूम पड़ती थी. और खास बात ये की हरियाली से भरपूर थी. आखिर ऑटो वाले ने हमें एक बिल्डिंग के पास उतारा. पैसे मैंने ही दिए. तीसरे माले पे वे किराएसे रहते थे. अन्दर पहुचते ही मैंने सामान पटका और निचे बैठ गया. भूक भी लगी थी तो शिर्के बोला की जल्दी से हाथ मुह धो लो नाश्ता करने चलते है. मै भी जल्दी से तयारी करके उसके साथ हो लिया. रास्ते में बात करते करते पता चला की दिनेश उसका सुपरवायजर है. दिनेश उसे हर एक तरीका बताता है कम करने का. दिनेश अपने काम और अच्छे स्वाभाव की वजह से जाना जाता है कंपनी में. वह दिनेश के बारे में वह मुझे जो कुछ भी बताता मै ख़ुशी से फुला नहीं समाता. एक चाय की दुकान के पास पहुचे और उसने २ प्लेट नाश्ते का आर्डर दिया. भूक जम के लगने की वजह से मैंने और एक प्लेट वड़ापाव आर्डर किया. मैं खांदेश्वर में नया था और मेरी हालत अभी ऐसी थी की मुझे सुस्ती आ रही थी. किसी भी हल में मुझे वापिस रूम में जाके सोना था.

उस दिन इतवार था तो सिर्फ सोने का कम था. शिर्के ने अपने बारे में बताया के वो रत्नागिरी का है. घर में कौन कौन है. उसने कैसे मेहनत करके पढाई की और अभी काम पर लगा. मैंने भी कुछ अपने बारे में बताया के मैं यहाँ किसलिए आया. खैर बाते करके नाश्ता करके वापिस रूम पे पहुंचे तो वहां मेरी मुलाकात उसके और दोस्तों से हुई. जिसमे से दो लोग नागपुर के थे. मुझे बहोत अच्छा लगा के कोई तो मिला नागपुर का. नहीं तो अकेला बोर हो गया रहता. मुझे पता है के नागपुर के लोग खुद को भी कभी अकेले में बोर होने नहीं देते और एक जगह में मिल गए तो बात ही कुछ अलग होती है. उनसे बाते की और फिर वे लोग शायद फिल्म देखने चले गए वे मुझे ले जाना चाहते थे लेकिन मै इतना थका हुआ महसूस कर रहा था के मैंने इंकार कर दिया. और हॉल में निचे पड़े बिस्तर पर सो गया.




उठकर देखा तो ३.३० हो गए थे और बाहर बारिश का मौसम हो गया था. ठंडी ठंडी फुहारे चालू थी लेकिन जम के बारिश नहीं हो रही थी. अब भूक भी लगी थी. तो फ्रेश होके कुछ खाने के लिए निकल पड़ा बाहर. रस्ते में ही एक रेस्तरा मिला तो अन्दर गया और उसको इक मसाला डोसा आर्डर किया. डोसा बहोत अच्छा था और बिल भी ६० रूपये. मैंने सोचा के इतना अच्छा डोसा मेरे नागपुर में कमसे कम ४५ रूपये तक आराम से मिलता है. लेकिन मैंने ज्यादा सोचा नहीं बिल पे किया और बाहर निकला. मेरे २-३ दिने के इंटरविव्ह थे लेकिन कमसे कम मुझे अच्छे कंपनी में जॉब चाहिए था तो मैंने और भी कितने जगह आवेदन करना था. इसलिए मैंने इन्टरनेट कैफे ढूंढा और आवेदन करने लगा. मैंने वही पर ही आवेदन किया जहाँ पर मेरे काम के अनुभव का ही उपयोग होने वाला था. एकाध घंटे के अन्दर सारा काम निपटाके मैं वहा से निकला और सोचा के रूम पर वापिस जाने से कोई मतलब नहीं थोडा घुमा जाये. तो मैंने टहलना पसंद किया और मैं पूरा खांदेश्वर घुमने के लिए निकला. कहीं कहीं जगह ऐसा लग रहा था के मैं नागपुर में ही हूँ. जगह नई भी थी और अच्छी भी थी. जब मुझे लगा के मैं थक गया हूँ तो मैं रूम के तरफ रवाना हुआ. रूम में पहुँच के देखा के सब लोग उठे थे और मस्ती कर रहे थे. मै भी उनमे शामिल हो गया. शाम को खाना खाने के लिए एक ताई के यहाँ गए तो शिर्के ने तथा सभी दोस्तों ने मेरा परिचय कराया और कहा के आज से ये यही पर खाना खाने आएगा. खाना अच्छा था और एकदम घर जैसा. ताई ने मेरे बारे में पूछा तो मैंने अपना थोडासा परिचय करवाया. उनको बताया के जॉब करने के सिलसिले में आया हूँ. खाना खाने के बाद हम रूम पे पहुंचे अभी भी बारिश की फुहारे चालू थी. सब लोग रूम में आये और गपशप करने लगे. बाद में सभी ने अपने अपने कमरे में प्रस्थान किया क्यों की वे सुबह जल्दी निकलते थे.


मैंने दुसरे दिन की मुलाकात (इंटरविव) के लिए कुछ पढना मुनासिब समझा. सो मैंने किताब निकली और पढने लगा. फिर भी मेरे विचारों का चक्र चालू था. मैंने खुद को समझाया जैसा भी दिन आएगा वैसा निकल लेंगे. पढने के बाद मैं सो गया दुसरे दिन मुलाकात के लिए जल्दी निकलना था. और जिस जगह कंपनी थी वहा पर कैसे जायेंगे? ये भी शिरीष ने मुझे बताया था. उसके लिए मुझे ८ बजे घर से निकलना था. तो मैं सारी चीजे समज के सो गया. शुभरात्रि.

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