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Showing posts from October, 2011

Chapter Four - My First Experience

भाग चार - मेरा पहला पहला अनुभव दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनी और मेरी नींद खुल गई शायद सिरीश अपने काम पर निकल गया था. मैंने घडी देखी तो सुबह के ७.१५ हो चुके थे. अरे बाप रे मुझे लेट हो गया था. मैंने जल्दी जल्दी मुहं धोया, नहाया और तैयार हुआ. रूम से निकला तो ८ बजने को ५ मिनिट काम थे. और स्टेशन पहुँचते पहुँचते १५ मिनिट तो लगनेही वाले थे. वैसा ही हुआ. लेकिन जब स्टेशन पे पंहुचा तो टिकेट के लिए लोगो की भीड़ थी. और मुझे जल्दी पहुंचना था. मरता क्या न करता. लाइन में लग गया. और जब टिकट मिली तो करीब ८.४० हो गए थे. और अभी मुझे दौड़ना था क्यों की लोकल ८.४० की थी. मैं प्लेटफोर्म की तरफ दौड़ा लेकिन कमबख्त लोकल ने हमें दगा दे दिया. अभी ८.५५ की लोकल थी. मतलब कमसे काम १ घंटा देरी से पहुचुंगा मैं मेरे साक्षात्कार के लिए. अभी समझ में आया था के मुंबई के लोकल को वहां के लोग मुंबई की धड़कन क्यों मानते है. हुशश! मैं हताश होके बैठ गया और दूसरी लोकल आने का इंतज़ार करने लगा. तब तक एक बार मैंने किताब पे नजर डालनी ठीक समझा. तो बैग से किताब निकली और एक बार पढ़ लिया. उद्घोषक ने लोकल आने की उद्घोषणा की. हम भी किताब...

Chapter Three - Known-Unknown City Mumbai

भाग तीन - जाना-अनजाना शहर मुंबई "उफ़ क्या बदबू हैं?" सोते सोते कुछ महसूस हुआ बदबू इतनी गंदी थी की नाक पर रुमाल रखा फिर भी कम नहीं हो रही थी. झुंझलाकर उठा देखा तो लोग फ्रेश हो रहे थे. कोई अभी भी सोये थे. कोई नाक पर रुमाल लिए तेढासा मुहं बनाये थे. जो शायद हमेशा आने जाने वाले थे वे जानते थे की अभी हम मुंबई के अन्दर दाखिल हो रहे है. क्यों की उन्हें इस चीज से कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था. मैंने देखा के सुबह के ६ बज चुके थे. और गाड़ी कल्याण के आस पास पहुँच चुकी थीं. मुझे पता ही नहीं चला की रात में किताब पढ़ते पढ़ते और विचारों के चक्रवुह के चलते कब नींद लगी. खैर मुंबई (कल्याण) आ गया था. मुझे याद आ रहा था के जब पिछली बार मैं पूना आया था तो दिलीप के साथ कल्याण तक आया था और यही से वापिस चला गया था. रात भर हमारी पार्टी चालू थी. और हमें ४ बजे पूना वापिस जाना था तो हम कल्याण से सीधा शिवाजी छत्रपति टर्मिनस (पहले का विक्टोरिया टर्मिनस VT) पहुचें थे. और वहा से गेट वे ऑफ़ इंडिया देखने गए और बस वापिस आके सीधा पुणे के लिए रवाना हो गए. मतलब सिर्फ ५ घंटे की मुंबई से मुलाकात हुई थी बस. अब ट्रेन श...

Chapter Two - The Start

भाग दो - शुरुवात मैं ट्रेन आने के समय के पहले पहुँच गया. अभी काफी समय था इसलिए मैंने टहलना ठीक समझा. सो मैं प्लेटफोर्म पर टहलने लगा. वही पर मुझे एक किताब की दुकान दिखी तो मैं वहां पहुँच गया. बहोत सारी किताबे थी वहां कुछ जानी पहचानी तो कुछेक अनजानी. सभी की ओर मैं एक नजर देखने लगा. तभी एक किताब ने मेरा ध्यान खीचा और कवर देख के मैंने किताब ले ली. उस किताब में लेखक ने अपना अनुभव लिखा था मुंबई के बारिश का जिसे वहा पर मुंबई मानसून कहते है. जी हाँ मैं भी मुंबई जा रहा था वो भी अगस्त महीने में. देखने मुंबई मानसून जो काफी मशहूर है. थोड़ी देर में ट्रेन आयी और मैं चढ़ गया मेरे सफ़र के लिए. ट्रेन नॉन स्टॉप थी तो मैंने पहले ही खाना और पानी साथ में ले लिया था.   मैं मेरे सिट पर बैठा और मुझे ध्यान में आया की जब मैं घर से निकला था तो जोरदार बारिश शुरू थी. मैंने सिर्फ बरसाती कोट पहना था लेकिन मेरे जूते पूरी तरह गिले हो चुके थे. तो मैंने जूते निकाला और सिट के नीचे रख दिया. मैंने देखा के मेरे आजू बाजु में बहोत से लोग थे जो मुंबई जा रहे थे. कोई काम के लिए, कोई पढने के लिए, कोई किसी से मिलने, कोई का...